
सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद 1992-93 के मुंबई दंगों के सभी पीड़ितों का पता लगाने का निर्देश दिया, जिससे कि उन्हें मुआवजा दिया जा सके। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य अपने नागरिकों के जीवन की रक्षा करने में विफल रही थी। शीर्ष अदालत ने पाया कि राज्य सरकार की ओर से कानून और व्यवस्था बनाए रखने और भारत के संविधान के अनुच्छेद- 21 के तहत प्रदत लोगों के अधिकारों की रक्षा करने में विफलता थी।
दंगे में 900 व्यक्ति मारे गए और 2000 से अधिक लोग घायल हुए
शीर्ष अदालत ने कहा, अगर नागरिकों को सांप्रदायिक तनाव के माहौल में रहने के लिए मजबूर किया जाता है तो यह अनुच्छेद- 21 द्वारा मिले जीवन के अधिकार को प्रभावित करता है। दिसंबर, 1992 और जनवरी, 1993 में मुंबई में हुई हिंसा ने प्रभावित क्षेत्रों के निवासियों के सम्मानजनक और सार्थक जीवन जीने के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। दंगे में 900 व्यक्ति मारे गए और 2000 से अधिक लोग घायल हुए थे। नागरिकों के घर, व्यवसायिक प्रतिष्ठान और संपत्ति नष्ट हो गई। ये सभी भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले उनके अधिकारों का उल्लंघन है। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि प्रभावित व्यक्तियों को राज्य सरकार से मुआवजे की मांग करने का अधिकार है क्योंकि उनकी पीड़ा का एक मूल कारण कानून और व्यवस्था बनाए रखने में राज्य की विफलता थी।
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह 108 लापता व्यक्तियों के कानूनी वारिसों का पता लगाने के लिए हरसंभव प्रयास करें, जिससे कि जनवरी 1999 से उन्हें 9 फीसदी प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ दो लाख रुपए का मुआवजा दिया जा सके। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को फरार आरोपियों का पता लगाने के लिए निष्क्रिय मामलों को फिर से शुरू करने का भी निर्देश दिया। अदालत ने राज्य सरकार को एक महीने के भीतर निष्क्रिय 97 मामलों का विवरण बंबई हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को प्रदान करने के लिए भी कहा है। हाईकोर्ट को उन संबंधित न्यायालयों को आवश्यक सूचना जारी करनी चाहिए जिनमें मामले लंबित हैं ताकि अभियुक्तों का पता लगाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकें।
शीर्ष अदालत ने अपने निर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए महाराष्ट्र राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति भी गठित की है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला वर्ष 2001 में शकील अहमद द्वारा दायर उस रिट याचिका पर आया है जिसमें दंगों की जांच के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित जस्टिस श्रीकृष्ण समिति की सिफारिशों को लागू करने की मांग की गई थी।