
सांकेतिक तस्वीर।
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बिलकिस बानो केस में गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने हलफनामा दाखिल किया है। मामले में गुजरात सरकार ने 11 दोषियों को रिहा करने के अपने फैसले का बचाव किया है। हलफनामे में कहा गया कि 11 दोषियों ने जेल में 14 साल की सजा पूरी कर ली थी। उनका व्यवहार भी अच्छा पाया गया। इसके बाद उन्हें रिहा करने का फैसला किया गया। हलफनामे में गुजरात सरकार ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस साल 11 जुलाई को एक पत्र के माध्यम से समय से पहले रिहाई को मंजूरी दी थी।
गुजरात सरकार ने किया था रिहा
मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोगों को 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से रिहा कर दिया गया था। गुजरात सरकार ने अपनी छूट नीति के तहत उनकी रिहाई की अनुमति दी थी। इन्होंने जेल में 15 साल से अधिक समय पूरा किया था।
क्या है मामला?
- 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में गोधरा स्टेशन के पास आग लगा दी गई। इस घटना में अयोध्या से लौट रहे 59 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। घटना के चलते गुजरात में दंगे भड़क उठे। दंगों की आग तीन मार्च 2002 को बिलकिस के परिवार तक पहुंच गई।
- उस वक्त 21 साल की बिलकिस के परिवार में बिलकिस और उनकी साढ़े तीन साल की बेटी के साथ 15 अन्य सदस्य भी थे। चार्जशीट के मुताबिक बिलकिस के परिवार पर हसिया, तलवार और अन्य हथियारों से लैस 20-30 लोगों ने हमला बोल दिया था। इनमें दोषी करार दिए गए 11 लोग भी शामिल थे।
- दंगाइयों ने बिलकिस, उनकी मां और परिवार की तीन अन्य महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया। उन सभी को बेरहमी से पीटा। हमले में परिवार के 17 में से सात सदस्यों की मौत हो गई। छह लापता हो गए। केवल तीन लोगों की जान बच सकी। इनमें बिलकिस, उनके परिवार का एक पुरुष और एक तीन साल का बच्चा शामिल था।
- घटना के बाद बिलकिस लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन पहुंचीं। जहां उन्होंने शिकायत दर्ज कराई। सीबीआई के मुताबिक शिकायत दर्ज करने वाले हेड कॉन्स्टेबल सोमाभाई गोरी ने भौतिक तथ्यों को दबाया और बिलकिस की शिकायत को तोड़-मरोड़ कर लिखा। यहां तक की उन्हें मेडिकल जांच के लिए सरकारी अस्पताल में तब ले जाया गया जब वो गोधरा के राहत कैंप में पहुंची। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद बिलकिस का मामला सीबीआई को जांच के लिए स्थानांतरित कर दिया गया।
आखिर किस आधार पर छोड़ा गया?
11 दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट में सजा माफी के लिए याचिका दायर की। कोर्ट ने गुजरात सरकार को याचिका पर फैसला लेने को कहा। इसके बाद गुजरात सरकार ने एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी ने माफी की याचिका मंजूर कर ली। इसके बाद इन लोगों की रिहाई हुई।
किस कानून के तहत हुई दोषियों की रिहाई?
संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 में राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास कोर्ट से सजा पाए दोषियों की सजा को कम करने, माफ करने और निलंबित करने की शक्ति है। कैदी राज्य का विषय होते हैं इस वजह से राज्य सरकारों के पास भी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 432 के तहत सजा माफ करने का अधिकार है।
राज्य सरकार पर कुछ पाबंदियां भी
हालांकि, सीआरपीसी की धारा 433A में राज्य सरकार पर कुछ पाबंदियां भी लगाई गई हैं। जैसे फांसी या उम्रकैद की सजा पाए दोषी को तब तक जेल से रिहा नहीं किया जा सकता है जब तक उसने कम से कम चौदह साल की कैद की सजा नहीं काट ली हो। सजा माफी की याचिका लगाने वाले राधेश्याम को जेल में 15 साल चार महीने हो चुके थे।