
सांकेतिक तस्वीर।
– फोटो : iStock
ख़बर सुनें
विस्तार
गुजरात का एक गांव ऐसा है, जहां राजनीतिक दलों व उनके प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार पर रोक है। मतदान न करने वाले लोगों को 51 रुपये जुर्माना भरना पड़ता है। गांव में यह नियम 39 वर्षों से हैं। ग्रामीण जागरूक मतदाता हैं। 100 फीसदी मतदान सुनिश्चित करते हैं।
गुजरात में एक व पांच दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। इससे पहले ही राजकोट से 20 किमी दूर स्थित राज समाधियाला गांव चर्चा का केंद्र बन गया। दरअसल, ग्रामीण ग्राम विकास समिति (वीडीसी) के नियमों से बंधे हैं। नियम तोड़ने पर जुर्माना भी भरना पड़ता है। इसमें चुनाव के दौरान वोट नहीं डालने का मामला भी शामिल है। अभी तक गांव में 100 फीसदी मतदान होता रहा है। गांव का सरपंच भी आम सहमति से चुना जाता है। सरपंच का कहना है कि जुर्माने के प्रावधान के कारण शत प्रतिशत मतदान होता है।
राज समाधियाला गांव की कुल आबादी 1,700 है। इनमें से करीब 995 मतदाता हैं। सब अपनी मर्जी से मतदान करते हैं। ग्रामीणों ने एक समिति बनाई है। मतदान से कुछ दिन पहले समिति के सदस्य ग्रामीणों की बैठक बुलाते हैं। यदि कोई मतदान करने में असमर्थता जताता है तो उसका वाजिब कारण बताना पड़ता है।
प्रचार किया तो नुकसान संभव
राजनीतिक दलों व उनके प्रत्याशियों को गांव में प्रचार करने की अनुमति न देने का नियम 1983 से है। इसकी जानकारी राजनीतिक दलों को भी है। नेता जानते हैं कि गांव में प्रचार करने गए तो नुकसान उठाना पड़ेगा।
- एक स्थानीय ने कहा, गांव के लोग उस नेता को वोट देते हैं, जो उनके लिए अच्छा काम करता है। बैनर, पोस्टर लगाने या पर्चा बांटने की अनुमति किसी को नहीं है।
गांव में इंटरनेट और वाईफाई
राज समाधियाला गांव हाईटेक है। इंटरनेट व वाईफाई की सुविधा है। सीसीटीवी कैमरे व आरओ प्लांट भी लगे हैं। इससे ग्रामीणों का जीवन सुविधाजनक हो जाता है। इससे पड़ोस के ग्रामीण भी प्रभावित हैं।
- एक स्थानीय के मुताबिक, पड़ोस के पांच गांवों में मतदान की अनिवार्यता की गई है। यही नहीं कूड़ा फेंकने पर भी जुर्माना वसूला जाता है।
लेडी डॉन संतोक बेन के बेटे का दावा, मेरा नाम काफी
गुजरात में सभी प्रत्याशी अपनी-अपनी वजहों से जीत के दावे कर रहे हैं। पोरबंदर की कुटियाना सीट पर लेडी डॉन रहीं संतोकबेन जडेजा के बेटे कांधल सपा के टिकट पर मैदान में हैं। उनका दावा है कि जीत के लिए उनका नाम ही काफी है। वे यहां से पिछले दो चुनाव भी एनसीपी के टिकट पर जीते थे। हालांकि राज्यसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी का समर्थन करने पर एनसीपी ने उन्हें अनुशासनहीनता के लिए पार्टी से निकाल दिया था।
राज्य में वोट बैंक न रखने वाली सपा के टिकट पर लड़ने के बारे में कांधल ने कहा कि 2012 में एनसीपी को भी गुजरात में कोई नहीं जानता था। कुटियाना सीट के मतदाता उनका परिवार है और वे पार्टी नहीं देखते, सिर्फ उनके नाम पर वोट करते हैं। उन्होंने बताया कि वे पिछले हफ्ते खुद ही एनसीपी छोड़ कर साइकिल पर सवार हुए क्योंकि एनसीपी के मना करने पर भी उन्होंने भाजपा के राज्यसभा प्रत्याशी को वोट दिया था। उनके अनुसार सपा से उनका पुराना नाता है, 1995 में उनके चाचा भी सपा की ओर से चुनाव लड़ चुके हैं।