
किरेन रिजिजू
– फोटो : ANI
ख़बर सुनें
विस्तार
Judicial Activism : विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका ये भारत में लोकतंत्र के तीन स्तंभ हैं। कार्यपालिका और विधायिका अपने कर्तव्यों में बंधे हैं और न्यायपालिका उन्हें सुधारती है। लेकिन जब न्यायपालिका भटक जाती है तो उन्हें सुधारने का कोई उपाय नहीं है। यह बात देश के कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सोमवार को अहमदाबाद में आयोजित एक कार्यक्रम में कही।
केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू ने कहा कि जब न्यायपालिका को नियंत्रित करने का कोई तरीका नहीं होता है, तो ‘ज्यूडिशियल एक्टिविज्म’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। कई न्यायाधीश मामलों पर टिप्पणियां करते हैं, जो कभी भी उनके दिए गए निर्णय का हिस्सा नहीं होती हैं… एक न्यायाधीश के रूप में आप व्यावहारिक कठिनाइयों, वित्तीय सीमाओं को नहीं जानते हैं। यह टिप्पणियां एक तरीके से उनकी सोच उजागर करती हैं।
#WATCH | “If there is no way to bind the judiciary, words like ‘judicial activism’ are brought to use. Several judges pass observations which never become a part of judgement… As a judge you do not know practical difficulties, financial limitations,” says Law Min Kiren Rijiju pic.twitter.com/L12gCoU1L7
— ANI (@ANI) October 17, 2022
उन्होंने कहा कि हमारे पास विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका ये तीन स्तंभ हैं… मुझे लगता है कि कार्यपालिका और विधायिका अपने कर्तव्यों में बंधे हैं और न्यायपालिका उन्हें सुधारती है। लेकिन मुद्दा यह है कि जब न्यायपालिका भटक जाती है, तो उन्हें सुधारने का हमारे पास कोई उपाय नहीं है।