राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले हफ्ते एक इंटरव्यू में सचिन पायलट के लिए गद्दार, निकम्मा और नाकारा जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने यह तक कह दिया कि पायलट के पास दस विधायकों का समर्थन भी नहीं है, ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर कोई स्वीकार नहीं करेगा। इस बयान ने राजस्थान की सियासत को नई चिंगारी दे दी। उसी दिन सचिन पायलट भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के साथ मध्यप्रदेश में कदम से कदम मिला रहे थे। यात्रा में राहुल के साथ उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा समेत अन्य बड़े नेता मौजूद थे। मध्यप्रदेश से यात्रा राजस्थान जाने वाली है। उससे पहले मचे इस घमासान ने पार्टी को नीचे से ऊपर तक बांट दिया है। राजस्थान में हर दूसरे दिन किसी न किसी मंत्री का बयान आता है और वह इस विवाद की आग में घी डालने का काम करता है।
जयराम रमेश ने दिए हैं कड़े फैसलों के संकेत
भारत जोड़ो यात्रा में राहुल के साथ चल रहे मीडिया विभाग के प्रमुख जयराम रमेश हर दिन प्रेस ब्रीफिंग करते हैं। हर जगह उनसे राजस्थान से जुड़ा सवाल आता है। तीन दिन से तो वह यह ही कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जैसे वरिष्ठ नेता से ऐसा बयान अप्रत्याशित था। सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों ही राजस्थान में पार्टी की जरूरत है। इसके बाद भी संगठन और पार्टी सर्वोपरि है। अगर राजस्थान के विवाद का हल निकालने के लिए कड़े फैसले लेने पड़ें तो वह भी लिए जाएंगे। उनके बयानों से सीधा-सीधा यह मतलब निकाला जा रहा है कि राजस्थान में कुछ कड़वे फैसले भी लिए जा सकते हैं। इस सबके बीच सचिन पायलट के संयम की भी तारीफ की जा रही है, जिन्होंने गहलोत को उनकी भाषा में जवाब देने के बजाय उन्हें वरिष्ठ नेता कहकर विवाद को शांत करने की कोशिश की। इसका फायदा उन्हें मिल सकता है।
वेणुगोपाल के 29 नवंबर की जयपुर यात्रा का प्रयोजन भारत जोड़ो यात्रा की तैयारियों की समीक्षा है। समन्वय समिति की बैठक में 35 सदस्य शामिल होंगे। इनमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट भी शामिल हैं। वेणुगोपाल की कोशिश दोनों में मध्यस्थता की होगी। साथ ही राजस्थान कांग्रेस के करीब-करीब सभी बड़े नेता भी बैठक में होंगे। वेणुगोपाल की कोशिश इस विवाद पर पानी डालने की होगी। इस दौरान वे नेताओं को नसीहत दे सकते हैं कि जो हुआ, उसे पीछे छोड़कर भारत जोड़ो यात्रा के स्वागत की तैयारियों में लग जाएं। सभी नेताओं को आपसी कटुता दूर करते हुए इसके लिए राजी करने की कोशिशें की जाएंगी।
क्या है विकल्प वेणुगोपाल के सामने
इस समय राजस्थान कांग्रेस में दो गुट स्पष्ट तौर पर दिख रहे हैं। एक तरफ गहलोत और उनके समर्थक मंत्री हैं, जो 25 सितंबर को कांग्रेस विधायक दल की बैठक की मुखालफत कर अपना फैसला सुना चुके हैं। दूसरी तरफ सचिन पायलट के समर्थक मंत्री-नेता हैं, जो गाहे-बगाहे उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की पैरवी करते रहते हैं। इस बीच, कुछ नेता ऐसे भी हैं जो 25 सितंबर को हुए घटनाक्रम में कांग्रेस संगठन के सर्वोपरि होने की बात कह रहे हैं। उनका कहना है कि 25 सितंबर को जो हुआ, वह नहीं होना चाहिए था। केंद्रीय पर्यवेक्षकों के सामने विधायकों को अपनी बात रखनी चाहिए थी। बैठक का बहिष्कार नहीं करना था। अनुशासनहीनता पर कार्रवाई होनी चाहिए। इस मामले में रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के पास पहुंच चुकी है, लेकिन उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा से पहले इस रिपोर्ट के आधार पर फैसला न लेने की ठान रखी है।